लकड़ी की जादुई परी की कहानी

लकड़ी की जादुई परी की कहानी

लकड़ी की जादुई परी की कहानी

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बहुत समय पहले, एक छोटे-से गाँव में रघु नाम का एक बढ़ई रहता था। रघु अपने हुनर के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। वह लकड़ी से तरह-तरह की चीजें बनाता था, लेकिन उसकी सबसे बड़ी ख्वाहिश थी कि वह एक ऐसी कृति बनाए, जो उसे औरों से खास बना दे। उसने अपनी इस चाहत के लिए दिन-रात मेहनत की, लेकिन उसे कभी संतुष्टि नहीं मिली।

एक दिन, रघु एक घने जंगल से कुछ खास लकड़ी लेने गया। वहाँ उसने एक पुराने और सूखे पेड़ की लकड़ी देखी, जिसमें अजीब-सी चमक थी। वह समझ नहीं पाया कि इस लकड़ी में ऐसा क्या खास है, लेकिन उसे लगा कि इस लकड़ी से जरूर कुछ अनोखा बनेगा। वह उस लकड़ी को लेकर अपने घर लौटा और अपनी कार्यशाला में उस पर काम शुरू कर दिया।

रघु ने उस लकड़ी से एक सुंदर परी की मूर्ति बनानी शुरू की। उसने मूर्ति की बनावट और आकार पर बहुत ध्यान दिया, और हर छोटे-से-छोटे हिस्से को बारीकी से तराशा। कुछ ही दिनों में उसने एक नन्हीं, प्यारी सी परी बना डाली, जिसके चेहरे पर मासूमियत और पंखों में अनोखा आकर्षण था।

जैसे ही मूर्ति पूरी हुई, रघु ने उसे प्यार से देखकर कहा, "काश तुम एक असली परी होतीं और मुझे किसी चमत्कार का अनुभव करा पातीं।" यह कहकर उसने परी की मूर्ति को एक ऊँचे शेल्फ पर सजाकर रख दिया और घर से बाहर चला गया।

रात को, जैसे ही चाँद की चाँदनी उस मूर्ति पर पड़ी, एक चमत्कार हुआ। परी की लकड़ी की मूर्ति में एक हल्की सी चमक आई, और धीरे-धीरे वह मूर्ति जीवंत हो उठी। उस परी ने अपनी आँखे खोलीं, अपने छोटे-छोटे पंख फड़फड़ाए और धीरे-से हवा में उड़ने लगी। यह परी अब एक जादुई परी बन चुकी थी, जिसका दिल उस बढ़ई की मेहनत और प्यार से बना था।

रघु जब घर लौटा, तो उसने अपनी कार्यशाला में एक हल्की सी रोशनी देखी। उसने भीतर जाकर देखा तो उसकी बनाई हुई लकड़ी की मूर्ति गायब थी। अचानक उसे हवा में हलचल महसूस हुई, और उसने देखा कि वही परी उसकी आँखों के सामने उड़ रही है।

रघु आश्चर्यचकित था और डर के साथ-साथ खुश भी। परी मुस्कुराई और बोली, "रघु, तुम्हारे प्यार और मेहनत ने मुझे जीवन दिया है। मैं अब तुम्हारी जादुई परी हूँ। तुमने मुझे बनाया है, इसलिए तुम्हारे हर अच्छे कार्य में मैं तुम्हारी मदद करूँगी।"

रघु को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने परी से पूछा, "क्या तुम सच में मेरी मदद कर सकती हो?"

परी ने सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, लेकिन याद रखना, मेरी मदद सिर्फ तुम्हारे नेक कार्यों के लिए ही होगी। अगर तुम किसी भी तरह का लालच या स्वार्थ दिखाओगे, तो मैं फिर से लकड़ी की मूर्ति में बदल जाऊँगी।"

रघु ने परी को वादा किया कि वह हमेशा दूसरों की भलाई और ईमानदारी के साथ काम करेगा। परी ने अपनी जादुई शक्तियों से उसकी कई मुश्किलें हल कर दीं। उसकी कार्यशाला में ग्राहकों की भीड़ लग गई, और वह पहले से कहीं ज्यादा खुशहाल और प्रसिद्ध हो गया।

हर रात परी उसके पास आती और वे दोनों मिलकर बातें करते। परी ने उसे कई नए हुनर भी सिखाए, और उसकी कला को और निखार दिया। धीरे-धीरे, रघु की ज़िंदगी में खुशियाँ ही खुशियाँ भर गईं। वह परी की दी हुई सीख को अपने दिल में बसाए हुए, अपने काम और जीवन में सच्चाई और दयालुता का पालन करता रहा।

यह कहानी पूरे गाँव में फैल गई, और लोग इसे लकड़ी की जादुई परी की कहानी कहकर बच्चों को सुनाते। परी के साथ बिताए पलों ने रघु को सिखाया कि मेहनत, सच्चाई, और दूसरों की भलाई का जादू ही असली जादू होता है।

और इस तरह रघु और उसकी जादुई परी की कहानी एक प्रेरणा बन गई कि असली चमत्कार प्यार, ईमानदारी, और निष्ठा में होते हैं।

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